मन के भीतर
मन के भीतर
कुछ कुछ
व्यवस्थित सा
कुछ अव्यवस्थित सा
विचारों का
समूह होता है
सुख और दुःख
आशा-निराशा
संतोष-असंतोष
शेष सभी कुछ
जिनको जीता है
कभी तो
कभी मर जाता है
ये विचारों का प्रवाह
जिसे कौन बांध पाया है
हमारे विचारों से उपजी
हमारी मानसिकता करती है
हमें परिभाषित
जो होती है
हमारे व्यक्तित्व की पहचान
और हमारे मन का
दर्पण भी।
डाॅ फौज़िया नसीम शाद