मन के भाव
मन के भाव ललित हो जाएं
एक छंद बनती है कविता ।
किसी भाव के शूल गड़े तो
नवल बंध गढ़ती है कविता ।।
भावो का अतिरेक उमड़ता
पन्नो पर चित जाती कविता ।
बुद्धि भाव का मेल मिले तो
नव भाषा लिख जाती कविता ।।
मिट्टी से जब खुशबू उठती
सरस् फूट आती है कविता ।
सागर से लहरे जब खेले
हँसती खिलती गाती कविता ।।
खेतो में जब जलना होता
पिघल स्वेद बनती है कविता ।
पत्थर जब हाथो से टूटे ।
सुलग भूख बनती है कविता ।।
जब मन की चटखन सुनती
दबे पांव आती है कविता ।
जब जब होती भटकन में
ठहर ठहर छूती है कविता ।।
सन्नाटों से बातें होती
एकाकी रिसती है कविता ।
जब पांवो में छाले फूटे
पीड़ा से रोती है कविता ।।