मन के भाव
सत्यकथा
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मन के भाव
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एक अप्रत्याशित सत्य घटना के अनुसार बात शायद नवंम्बर 2001 की बात है।
उस समय मैं उ.प्र.परिवहन निगम गोण्डा डिपो में परिचालक के रूप में कार्यरत था।एक दिन जब मैं बस परिचालन करते हुए गोण्डा से सुल्तानपुर जा रहा था।भीषण ठंड हल्का कोहरा उस दिन था।जब हमारी बस कटरा रेलवे स्टेशन के सामने से गुजर रही कि तभी अचानक 21-22 साल के दो युवा काफी तेजी से ओवरटेक करते हुए बायीं ओर से निकले, अचानक से उनका इस तरह इतनी तेजी से निकलना मुझे डरा सा गया।पल भर में ही वह आँखो से ओझल हो गये।इस तरह का सामना हमारे लिए कोई नयी बात नहीं थी,परंतु आज जाने क्यों मेरा मन किसी अप्रत्याशित अनहोनी की चेतावनी दे रहा था।मेरे मन में भी बुरा ख्याल आया कि कहीं इनके साथ कोई हादसा न हो जाय।तब तक मेरी बस अयोध्या पुल से थोड़ा पहले पहुंच गई, हमारे चालक ने बस की रफ्तार कम की तो मैनें देखा की एक बाइक मैटाडोर से पीछे से भिड़ी हुई है और वही दो युवा पड़े हैं,शायद मृत।कुछ पलों के लिए तो मैं स्तब्ध हो गया।तब तक मेरी बस नये घाट अयोध्या बस स्टेशन पर पहुंची चुकी थी।ये सब बमुश्किल 7-8 मिनट में ही हो गया।
आज भी जब वो घटना याद आती है तो ये सोचकर मन हिल जाता है कि मन में अचानक आये भाव भी तुरंत सच भी हो जाते हैं।
परंतु ये समझ नहीं आता कि मन में आये बुरे भाव ही इतनी जल्दी सच कैसे हो जाते हैं?शायद ही इसका उत्तर मिले।
,?सुधीर श्रीवास्तव