मन के ब्यथा जिनगी से
# मन के ब्यथा #
सैदखन अंहा उपराग सुनबै छी…
जिनगी हमरा सं दूर भागै छी..!
पातर रस्सी के झुलुवा मे….
हमरा किय तेज झूलवै छी….?
संसारक सब ब्यथा सुना क…
हमरा राती किया सुतबै छी…?
सब्दीन नबका घाब लगा क…
पुराना सवके बिसैर रहल छी…!!
जिनगी हमारा मे ग्रहण लगा क…
जिबू असगर् कोना कहै छी…?
मया मोह के वंधन से हम….
जिनगी से रिस्ता तोइर रहल छी।…।।।