मन के चंचल दर्पण में
मन के चंचल दर्पण में इक तेरा चेहरा रहता है
जैसे बीच बदलियों के वो चाँद सुनहरा रहता है
रंग तितलियों के लेकर तू उड़ जाती है बागों में
सुर सजते ही सरगम बनकर खो जाती है रागों में
बंद करूँ मैं जब भी पलकें पाऊँ तुमको ख्वाबों में
पढ़ता हूँ तो अक्षर बनकर आ जाती हो किताबों में
आये मुझे तुम्हारी खुशबू आती हुई बहारों में
सच बोलूँ कल देखा तुमको मैंने चाँद सितारों में
पहले से भी ज्यादा सुंदर मुझे दुबारा लगती हो
चलती हो तो नदिया की इक चंचल धारा लगती हो
डूबता उतराता रहता हूँ नैनों की गहराई में
खोजने लगता हूँ तुमको मैं अपनी ही परछाई में
ईश्वर की अनुपम कृति को मैं रोज निहारा करता हूँ
हृदय पटल पर भावों की तस्वीर उतारा करता हूँ