मन के गाँव
ज्ञान का दिया जलाओं तुम
अपने अंधेरे मन के गाँव में
देखो कैसे अंधेरा मिटता है
उस दिया के छाँव में।
माना फँसा हुआ है तु अभी
नदी के बीच मझदार में
खुद से सीख ले पतवार चलाना
न खड़ा रह तु माँझी के इंतजार में।
रख पुरी हिम्मत मन में तु अपना
हाथों में हौसला तु भरना,
गति देना तु अपने पतवार में
देखना एक दिन तुम होगे
नदी के उस पार मे।
अपने दर्द का दवा तु खुद बन जा
राह जो हो नामुमकिन लगे
उसे मुमकिन बनाने में लग जा
विश्वास का लौ जला लो तुम
अपनी बुझी हुई मन के गाँव में।
संघर्ष कठिन है इस जीवन में
अभी बहुत दूर चलना बाकी
पाँव में पड़ेगें कितने भी छाले
पर पाँव न रुकने देना साथी ।
आएँगे कितने सारे ठाँव
तेरे मन को ललचाने
कितने दुश्मन मिल जाएँगे
राह तुम्हारे भटकाने।
तुम्हें सम्हलना है मेरे साथी
डिगे रहना है अपने पथ पर
मंजिल जब तक हासिल न हो जाए
तब तक कदम बढ़ाते रहना है
फिर जाकर बैठ सकोगे
तुम सफलता के छाँव में।
~ अनामिका