मन की संवेदना: अंतर्मन की व्यथा
दिल की धड़कनें तेज़ होती हैं,
जब मन की संवेदना बढ़ती है!!
भावनाओं का तूफान आता है,
यूं शब्दों की बौछार बरसती है!!
संवेदना बड़ी अनूठी सी राग है,
दुःख-सुख में हमेशा जूझती है!!
बनके एक सोच, एक आवाज़,
हर इंसान के अंतस में झूमती है!!
रूमानी बनाती जीवन का सफ़र,
मन की संवेदना ऊपर उठती है!!
सामने आती हैं बड़ी-बड़ी मुश्किलें,
जीवन जीते हुए आरजू सिमटती है!!
मन की संवेदनाओं की दुनिया में,
हर शब्द एक ख़ास महत्व रखती है!!
ढूंढती है मन की आत्माओं में शांति,
बस अंतस से जब वो इतनी टूटती है!!
भावनाओं की पावन मधुर धुन में,
बस शब्दों की धार नहीं रुकती है!!
मन की संवेदना ह्रदय में समेटे हुए,
कविता के रूप में अविरल बहती है!!
हार मानना पड़ता है सहानुभूति से,
जब कभी मंज़िल नहीं मिलती है!!
सुनते हैं जो बस अपने मन की वो,
चुनौतियों से धन्य जीवन भरती है!!
बनाती है सबके साथ मीठे रिश्ते,
जब संवेदनाओं की धारा बहती है!!
मन में उपजाते प्यार-उमंग के पौधे,
संवेदना के सुर में ज़िंदगी ठहरती है!!
जागती है जब मन की संवेदनाएं,
कोरे संसार में वो नवरंग भरती है!!
चंद्रिका बनाती है कविता की रेखाएं,
दिलों के रास्ते जज़्बात निखरती है!!
हृदय की अनंत गहराई में उतर कर,
सत्यता की एक झलक छिपाती है!!
गीत गुनगुनाती, मन की अल्फाज़ वो,
अंतस हृदय सदा शीतलता पाती है!!
जब मन की संवेदना बाहर आती है,
ये भू-धराएं नयी गाथाएं गाती है!!
जब उठती है सात-सुरों की सरगम,
सारा अंतर्मन रोम-रोम गुनगुनाती हैं!!
©️ डॉ. शशांक शर्मा “रईस”