मन की मन में
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मन की मन में रह गई मेरे मन की बात ।
अवसर रही तलाशती, मैं तो सारी रात ।।
सुने कौन पीड़ा मेरी , सब बेबस लाचार ।
किसे कहूँ किसने मुझे ,दी गम की सौगात ।।
उलझन में डूबी रही , सुलझा नहीं सवाल ।
गुजरे दिन जैंसे झड़े, तरु के पीले पात ।।
सूखी नदिया रेत की , चाह रही है नीर ।
बादल तो आये मगर, कर न सके बरसात ।।
आँधी में टूटे बहुत , बड़े बड़े थे रुख ।
हरी दूब को तोड़ दे, किस की है औकात ।।
कटे पेड़ जंगल हुए , हरे भरे वीरान ।
अपनों ने ही कर दिया ,अपनों के संग घात ।।
मन धीरज क्यों न धरे, होता क्यों बेचैन ।
बीते जब दुख की निशा , तब होता प्रभात ।।