मन की मनमानी….
काव्य सृजन-97
कर लिया मन ने अाज
फिर मनमानी!
चिर निद्रा तल्लीन हुए
आँखों ने ठानी!
बढ़ता गया समय का वेग
तब हाथों ने ठानी!
बहुत हो गयी चिर निद्रा
अब उठने की आनी!
आँखें जब घड़ी पर पड़ी
समय की अधिकता
सोचकर मन व्यथित हुआ
ये क्या हुआ?
आज तो विलम्ब हुआ सब
अनियमित!
तब मन ने ठहाके लगाकर कहा
आज कर ली मनमानी!
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शालिनी साहू
ऊँचाहार, रायबरेली(उ0प्र0)