मन की बात
मन की सुनू बात की तन की सुनू
बहुत सोचता हूं कि किसकी सुनू
मन मे बस प्यार उसके लिए
और तन मे छिपा प्यार किसके लिए
बहुत सोचता हूं कि किसकी सुनू
कभी मन ना डोला किसी के लिए
मगर जब देखा उसकी नज़र
फ़िर नज़र ना हुई किसी के लिए
प्यार करता था उससेे मै सबके लिए
ना कभी कोई गम था ना कोई भी दुख था
मगर एक तूफा सा आया उड़ा ले गई
फ़िर जीयुं तो जीयुं मै किसके लिए
उसकी आवाज को तरसा मै अपने लिये
उसको देखने को तरस मै गया अपने दिल के लिए
कहे तो कहे हम किससे कहे
दिल मे दर्द है कितना कैसे कहे
दिल मे आज भी वो बसी है
ये उससे कैसे कहे वो मतलबी सी निकली
अपने अपनो के लिए
अब ये कैसे कहे कितना प्यार है मेरे अंदर उसके लिए