मन की बात कर रहे हैं
मन की बात कर रहे हैं
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मन की बात कर रहे हैं,
जन हर रोज मर रहे हैं।
रग रग पर निशान भारी,
पल पल जख्म भर रहे हैं।
जन को राज ये न भाया,
सब क्यों आज डर रहे हैं।
सह कर झूठ का पुलिंदा,
गहरी पीर जर रहे हैं।
दिल पर जीत हो न पाई,
जल में हार तर रहे हैं।
मनसीरत कभी न बोला,
खुद से जान हर रहे हैं।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)