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26 Jun 2020 · 1 min read

मन की बात।

मन की बात….

जिसको देखो अपने मन की कहता है।
मेरे मन के अन्दर कौन ठहरता है।
भाई-बहन, पत्नी-बच्चे या मात-पिता,
दादा-दादी हो चाहे कुछ यार-सखा।
कोई नहीं जो मेरी पीड़ा को समझे,
इन आँखों से बहते सरिता को समझे।
बस जख्मों के पन्ने पलटे जाते है,
सब पन्ने को उल्टे, उलटे जाते है।
रिश्तों के मेले में खोता रहता हूँ,
तन्हा होकर तन्हा रोता रहता हूँ।
दायित्वों का बोझ उठाने की कोशिश में,
गिर जाता हूँ मैं भी चलने की कोशिश में।
सब कहते है बस सबका मैं ध्यान करूँ,
नीलकण्ठ सा केवल विष का पान करूँ।
खुद की इच्छाओं पर मिट्टी भरता हूँ,
लेकिन सबकी इच्छा पूरी करता हूँ ।
संघर्षों की आपा-धापी थमने तक,
जब जीना है यूँ ही मुझको मरने तक।
अच्छा होगा हंसकर सब स्वीकारूँ मैं,
सबको जीत दिलाऊं खुद को हारूँ मैं।
तब देखेंगे कैसे वक्त गुजरता है,
मेरे मन के अन्दर कौन ठहरता है।

Language: Hindi
2 Likes · 3 Comments · 470 Views
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