मन की फितरत
मन ही मन को जानता,मन को मन से प्रीत।
मन ही मनमानी करे, मन ही मन का मीत।।
मन झूमे,मन बांवरा,मन की है अद्भुत रीत।
मन के हारे हार है, मन के जीते है जीत।।
मन को कैसे मनाए, मन है बड़ा अधीर।
मन के मानने से,मनुष्य होता राजा फकीर।।
मन बड़ा चलायमान है,मन न माने कोई बात।
मन अगर मान जाए ये मन की है बड़ी सौगात।।
मन को तुम मनाइए, जो टूटे ये सौ बार।
मन की ऐसे पिरोइए,जैसे टूटे मुक्ताहार।।
मन की बाते मन में रखो,करो न विस्तार।
मन की बाते निकल गई होगे रूसवार।।
आर के रस्तोगी गुरुग्राम