“मन की खुशी “
डॉ लक्ष्मण झा परिमल
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कोई देखे
या ना देखे
मुझे उनसे है
क्या लेना ?
मैं अपनी धुन का
हूँ मालिक
मुझे सिर्फ दिल का ही सुनना !
मेरा दिल जो
भी कहता है
उसे मैं कर
दिखाता हूँ
जो मन की
कल्पना होती
वही कविता बनाता हूँ !
नहीं चाहत है
कोई भी
प्रशस्ति की
नहीं इच्छा
जो कोई
प्यार से ले ले
उसे देते हैं हम शिक्षा !
मिला है
आज तक मुझको
उसे दिल में
बसाया है
मैं खुश हूँ
आज जीवन में
मेरे तन में समाया है !
हमें जाने
या ना जाने
कभी तो
जान लेंगे लोग
मेरी हर
कृतियों को देख
मुझे पहचान लेंगे लोग !
दिया है
जितना हे ! भगवान
मुझे उतना
सदा देना
मैं खुश हूँ
आज जितना भी
खुशी के पल मुझे देना !!
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डॉ लक्ष्मण झा परिमल
साउन्ड हेल्थ क्लिनिक
एस 0 पी 0 कॉलेज रोड
दुमका
झारखंड
भारत
04.08.2024