मन की कोई थाह नहीं
पल में जाता आसमान पे
पल में सपनों की उड़ान पे
सपनों में ही भरे कुलाचें
मन को कुछ परवाह नहीं
मन को कोई जान न पाया
मन की कोई थाह नहीं
आसमान में उड़ता जाए
झोली में तारे भर लाए
सपनों में जो न मिल पाए
ऐसी कोई चाह नही
मन को कोई जान न पाया
मन की कोई थाह नहीं
जीवन की तो राह यही है
सुख दुख के जज्बात यही है
किस ढिग जीवन ले जाएगा
दिखती कोई राह नहीं
मन को कोई जान न पाया
मन की कोई थाह नहीं
सपने तो केवल सपने हैं
जागृत पल ही बस अपने हैं
ध्यान रहे जब ये टूटें तो
मुख से निकले आह नहीं
मन को कोई जान न पाया
मन की कोई थाह नहीं
श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद