मन किसी ओर नहीं लगता है
मन किसी ओर नहीं लगता है
सहमा सहमा-सा दिन गुज़रता है,
वक्त हाथों से ऐसा फिसला है
रेत मुट्ठी से ज्यों फिसलता है,
दोष क्यूँ दे रहे हो दुनिया को
जैसा बोओगे वैसा फलता है,
मसअला ये नहीं कि कौन मिला
मसला ये है कैसे मिलता है,
लौटकर फिर कभी नहीं जाता
तीर तरकश से जब निकलता है