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28 Feb 2024 · 1 min read

मन किसी ओर नहीं लगता है

मन किसी ओर नहीं लगता है
सहमा सहमा-सा दिन गुज़रता है,
वक्त हाथों से ऐसा फिसला है
रेत मुट्ठी से ज्यों फिसलता है,
दोष क्यूँ दे रहे हो दुनिया को
जैसा बोओगे वैसा फलता है,
मसअला ये नहीं कि कौन मिला
मसला ये है कैसे मिलता है,
लौटकर फिर कभी नहीं जाता
तीर तरकश से जब निकलता है

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