मन का राजा
मैं अपने मन का राजा हूँ, अपने मन की ही करता हूँ।
खुल कर जीता हूँ जीवन मैं, नहीं यार किसी से डरता हूँ।
अपने ही मन की सुनता हूँ, अपने मन की ही कहता हूँ।
अपनी ही दुनिया में हरदम, मन मस्त मगन मैं रहता हूँ।।
दुनिया की मुझे परवाह नहीं, ना फ़िक्र कोई बदनामी की।
ना मशहूरी की चाहत है ना डर मुझको गुमनामी की।।
बहती नदिया सी बहता हूँ, पंछी की तरह विचरता हूँ।
स्वच्छंद हवा का झौंका हूँ, पल भर ना कहीं ठहरता हूँ।।
नहीं मुझे किसी से भेदभाव, सबसे ही है मुझको लगाव।
मन के सागर में सबके लिए रखता हूँ अपने प्रेम भाव।।
कोई कितना भी मुझको रोके, कोई कितना भी मुझको टोके।
जो ठान मन में करना चाहूँ, वो रहता है निश्चित होके।।
जो मेरे मन को भाता है, वो पाने में जुट जाता है।
अपने हठ के बल पर पगला, निश्चय ही उसको पाता है।।
रिपुदमन झा ‘पिनाकी’
धनबाद (झारखण्ड)