** मन का मोह **
डा ० अरुण कुमार शास्त्री
एक अबोध बालक **अरुण अतृप्त
** मन का मोह **
जिसने आना होता है
वो जाता ही नही है
जिसने आना होता है
वो सताता ही नही है
टूटते एहसास को
वो डुबाता ही नही है
दिया सा जल रहा है कोई
उसको जलाता भी नही है
मन्दिर में कोई कैसे कह दे
की भगवान नही होता
तिल तिल सिसकते सुबकते
इन्सान को आभास नही होता
गणित मानव मन का अब
सीखना होगा हे मानव तुझको
झूटी उम्मीद का दामन अब
झोड़ना होगा तुझको , रीत
दुनिया दारी से निभाना
सीख ले मानव
जिसने आना होता है
वो जाता ही नही है
जिसने आना होता है
वो सताता ही नही है
टूटते एहसास को
वो डुबाता ही नही है
दिया सा जल रहा है कोई
उसको जलाता भी नही है
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