मन का मेल
मेरे मन का तुम्हारे मन से जब मेल होगा।
तब शायद तुम्हे मुझसे प्रेम होगा।।
मैं तब तक तुम्हारा मन नही पढ़ पाऊंगा।
इजाजत नहीं होगी , दहलीज कैसे आऊंगा।।
देखता तो रोज हूँ तुम्हें मैं ,मन के भीतर कैसे प्रवेश करू।
तुम्हारे मन के विरुद्ध जाकर ,तुम्हे कैसे प्रेम करू।।
स्थिर मन मचल उठता है , तेरी सादगी को देखकर।
सब्र का बांध रोके रखता हूँ , दिल की बात न बोलकर।।
संघर्ष मेरा इतना, तेरी राह से जुड़ा मेरा सफर हो।
मेरी जिंदगी की कहानी में , तू मेरा हमसफर हो।।
किसी दिन तो होगी मेरे मन की ये अभिलाषा पूरी।
मेरे मन की दहलीज पर , जब होगी दस्तक तेरी।।
मैं फिर तुम्हारा मन पढ़ पाऊंगा।
तुम मुझे और मैं तुम्हे प्रेम कर पाऊंगा।।
– प्रतिक जांगिड़ ( इंदौर )