मन का मीत
मन की आंखों में बसा मेरे मन का मीत,
कभी चुरावे नैन वो गाये कभी वो गीत।
नहीं वो कुछ भी पूछे शरारत उसको सूझे
करे इशारे दूर से कभी बुलावे तीर
मुझे बुलाके पास वो कभी उछाले नीर
लगता जैसे जानता नहीं प्रीत की रीत
मन की आंखों में बसा मेरे मन का मीत
कभी चुरावे नैन वो गाये कभी वो गीत।
रहूं मैं हक्का बक्का वो अपनी धुन का पक्का
प्रेम से जब वो बोले द्वार वो दिल के खोले
मैं बेचारा भोला भाला चंचल वो मनमीत
मुझे रिझा कर प्यार से ले वो मुझको जीत
मन की आंखों में बसा मेरे मन का मीत
कभी चुरावे नैन वो गाये कभी वो गीत।
अनुराग दीक्षित