मन का मीत
तुम भोर का रवि
व्याकुल ह्रदय की छवि
जहां न पहुंचे रवि तुम वहां का कवि
तुम प्रेम हो तुम प्रीत हो
मेरे मन का मनमीत हो
मेरी बांसुरी के तुम गीत हो
सदियों से चली आ रही तुम वो रीत हो
कोमल सि काया वृक्षों की घनी छाया
बिन मां के शिशु कि तुम आया
मेरे रेतीले रेगिस्तान के कस्तूरी मृग की तुम हो माया
परमात्मा का सुंदर सा स्पर्श
मेरे तन का तुम उत्कर्ष
डगमगाति नैया का तुम हो हर्ष
Mangla kewat , from hoshangabad mp