मन का “महल”
मन का “महल”
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मन में अपनी
महल एक ऐसी
तैयार करें….
जो इतनी ऊंची हों ,
ऊंची-ऊंची उड़ानें भरकर
ही उस ऊंचाइयों तक
पहुॅंचा जा सके !!
फिर खूबसूरत सी
अनन्त भावनाएं
सुंदर मन में अपने
जागृत करते रहें….
उस भावनाओं के
समुंदर में डुबकियाॅं
अंदर तक लगाते रहें !!
कुछ ऐसी भावनाएं
जरूर हासिल होंगी !
और यही भावनाएं
पहुॅंचाएंगी आप सबको
उस मन की मंज़िल तक !
उस ऊंचाइयों में स्थित
खूबसूरत महल तक !!
तब जाकर सपने आपके
साकार हो सकेंगे !
इस कठिनाई भरे ज़िंदगी के
सार आपको मिल पाएंगे !
जीवन जीने का मतलब
आप बखूबी समझ पाएंगे !!
जब तक आप सही मायने में
इस जीवन के हर पायदान
पर घटित होनेवाली
घटनाओं के गूढ़ को
नहीं जान पाएंगे….
ये दुनिया किधर जा रहीं…
किस तरह कोई गतिविधियाॅं
संचालित हो रहीं….
इन सब चीज़ों का राज़
आप समझ नहीं पाएंगे !
बस, यूॅं ही मूकदर्शक बन
सिर्फ हर घटनाचक्र के
साक्षी बनकर रह जाएंगे !
उसमें अपनी मुख्य
भागीदारी नहीं निभा पाएंगे !!
या यूॅं कहें कि….
ये अनमोल सी ज़िंदगी
यूॅं ही गुजरती चली जाएंगी !
और हम सब ज़िंदगी का
कोई भी आनंद नहीं उठा पाएंगे !
हर खुशियों से हर पल ही
वंचित होकर ही रह जाएंगे !!
तो निर्भीक होकर बनाएं
अपने अंतर्मन में….
सपनों का इक ऊंचा सा महल !
और उस ऊंची मंज़िल तक
जल्द पहुॅंचने हेतु
हर सार्थक प्रयास करें !!
मंज़िल प्राप्त होंगी !
सपने साकार होंगे !
आनंद की अनुभूति होगी !
यह जीवन सार्थक होगा !!
यह जीवन सार्थक होगा !!
स्वरचित एवं मौलिक ।
अजित कुमार “कर्ण” ✍️✍️
किशनगंज ( बिहार )
दिनांक : २०/०६/२०२१.
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