‘ मन का तम और प्रज्वलित दीप ‘
‘ मन ‘…हमारे शरीर का वह हिस्सा जिसके आगे दिमाग भी हार जाता है और जिसे हम अपनी अन्तरात्मा कहते हैं इसकी गति का अनुमान तक लगाया नही जा सकता । ये मन बहुत ही असाधारण होता है इसकी तीन अवस्थायें होती हैं जैसे :- चेतन मन , अचेतन मन और अर्धचेतन मन , ये तीनों अवस्थायें अपनी पूरी पकड़ हमारे उपर रखती हैं हमें तम से उजाले की तरफ ले जाने मेें इनका महत्वपूर्ण योगदान होता है । लेकन हम मनुष्य लाख कोशिशों के बावजूद मन के तम से बच नही पातेे हैं….बाहर से हम कितना भी दिखावा कर लें रौशन होने का लेकिन अगर मन में तम है तो सब बेकार है इसके आगे इंसान हार जाता है । हमेें प्रज्वलित दीप से सीखना चाहिए की कैसे ये किसी भी स्थान पे हों महल में या झोपड़ी में अपना स्वभाव एक जैसी रौशनी देने में कोई फर्क नही करता और ना ही अंधेरे अर्थात तम से ज़रा भी डरता है की मैं अकेला इस अंधकार का क्या बिगाड़ पाऊँगां , उसका ये विश्वास ही गहन अंधकार में भी उसको प्रज्वलित रखता है । यही प्रज्वलित दीप हमें हमारे मन के तम को दूर कर विश्वास की रौशनी में जगमगाना सीखाता है और हमें इस प्रज्वलित दीप से ये सीखना भी चाहिए नही तो हमारे मन का तम हमारे उपर हावी होकर निराशा के अंधेरे में ढ़केल देगा फिर हमारा उस अंधेरे से निकलना बहुत ही कठिन हो जायेगा । एक छोटा सा प्रज्वलित दीप हमारे उस मन के तम को अपनी इच्छाशक्ति के उदाहरण से रौशन कर सकता है तो हमारा मन जिसको हम अन्तरात्मा कहते हैं वो कैसे नही अपने तम को हरा सकता है…
मन के हारे हार है
मन के जीते जीत
मन के गहरे तम को हरा
प्रज्वलित है ये नन्हा दीप ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 11/11/2020 )