मन का आंगन
मन का आंगन
बात अकेले पन की है।
उसमें उलझे पन की है ।।
उलझन में सीधा रस्ता ।
खोज रहे जीवन की है ।।
कांटे भरे चमन में एक ।
तितली के उलझन की है ।।
नहीं एक भी फूल खिला ।
सूने उस मधुबन की है ।।
जिसमें जाल तुम्हारे हों।
मन के उस आंगन की है ।।