मन कहता है
मन कहता है
मन कहता है अब तो मेरा
हर किसी से प्यार कर
अलसाये इस परिवेश में
वीणा की झंकार कर
त्यागी योगी और तपस्वी
साधक तू तैयार कर
जाग उठे मानवता सारी
कुछ ऐसी पुकार कर
जिसको कोई नहीं अपनाता
ऐसो को भी दुलार कर
कष्ट भोगते इस मानव की
चिंता का परिहार कर
अत्याचारी ताकतवर का
कुछ तो तू प्रतिकार कर
गर ऐसा भी कर ना सके तो
मीठी सी मनोहर कर
चिंगारी जो छिपी पड़ी है
अब उसको अंगार कर
काव्य ,कथा और कल्पना
अब इनका श्रृंगार कर
धूल धूसरित हीरे मोती
उनकी कुछ पहचान कर
जड़ता को जो तोड़ सके
विध्वंसी ललकार कर
कौन सुनेगा तेरी पीड़ा
नाहक मत चीत्कार कर
मन कहता है अब तो मेरा
हर किसी से प्यार कर
ओम प्रकाश मीना