मन आतुर है जाने क्यों ।
सपने नये सजाने को,
मन आतुर है जाने क्यों ।
तुम सँग गुनगुनाने को,
मन आतुर है जाने क्यों ।
थक गया मैं यूँ अकेले,
अब चला जाता नहीं ।
ज़िंदगी के इस सफ़र में,
और कुछ भाता नहीं ।
तुमको फिर बुलाने को,
मन आतुर है जाने क्यों ।
आशियां छोटा सही,
पर मिलके हम बनाएँगे ।
प्रेम के ऐसे गुलों को,
प्रेम से खिलाएँगे ।
दिल से खिलखिलाने को,
मन आतुर है जाने क्यों ।