=मन्मथ परदेशी=
बरसत नीर जलधि अंगारा , किंशुक काल कला संसारा l
तड़पत मीन नीर प्रिय लागे , कामी ह्रदय विराग न साजे ll
चढ़ा आषाढ़ मेघ अनुरागा , कोकिल दादुर बोलन लागाl
चंचल चित्त सुभाव बिसेखी , कंत संत मन्मथ परदेशी ll
राजकिशोर मिश्र ‘राज’ प्रतापगढ़ी
बरसत नीर जलधि अंगारा , किंशुक काल कला संसारा l
तड़पत मीन नीर प्रिय लागे , कामी ह्रदय विराग न साजे ll
चढ़ा आषाढ़ मेघ अनुरागा , कोकिल दादुर बोलन लागाl
चंचल चित्त सुभाव बिसेखी , कंत संत मन्मथ परदेशी ll
राजकिशोर मिश्र ‘राज’ प्रतापगढ़ी