मन्नू की आत्मजा
मि मि मि मि बोल रही है
करवट लेकर वो लेटी है
शायद अब पहचान हो गई
४ महीने की मेरी बेटी है
मम्मी पल भर दूर चली तो
उसको अब यत्र तत्र ढूंढती
लेकिन अपने मित्र यहाँ है
उल्लहास से वो, जहाँ आँख मुंदती
सूरी चाचा, नीरज भैया
विधि बिधि हम सब पुकारे
सुक्रिया उनका मैं कहता हु
जो मिलने आते मेरे द्वारे
कभी न हमको विरह देना
ज्ञात हे ईश्वर हम सब है नश्वर
सबको सारी खुशियाँ देना
मेरे प्राण का पंछी लेकर
“विधि” का ऐसा विधान तुम लिखना
पुष्प सेज पर जीवन बीते
मानवता का परिचय बनाना
व्यवहार से वो सबके मन को जीते
मेरी गुड़िया मेरी लड्डू
मेरी नन्ही वो परी है
तेरा जीवन सींच रहा मैं
मेरी इससे डाल हरी है.
जीवन का मेला हर कोई अकेला
पर ऐसा क्यों तार बुन गया
तेरा चेहरा देख क्या लू मैं
लगता न आज है कोई झमेला
एक ही मुस्कान, अन्नंत प्रेम की
कोई झरना है कोई फुलवारी है
इसको समझना बड़ा है मुश्किल
लेकिन हमारा प्रयास जारी है