“मनोहर लाल मेहता”
“संस्मरण”
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“मनोहर लाल मेहता”
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यह संस्मरण हमारे एक अंतरंग मित्र की मृत्यु के पश्चात लिखा गया।वह आयु में में मुझसे लगभग सात वर्ष छोटे थे;मृत्यु के समय लगभग पचपन वर्ष।साधारण से साधारण परिवार से संबंध रखते थे।उनके दादा के समय से परिवार को संघर्षमयी जीवन व्यतीत करते हुये देख रहा हूँ।उनका जीवन भी अपने माता पिता की भाँति संघर्षमयी ही रहा।पढ़ाई लिखाई नहीं हो पाई।यद्यपि उन्होंने परिश्रम करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी।हर क़िस्म के काम अजमाया।दिल्ली में थोक की दुकान में काम करना हो चाहे बाल बीयरिंग ठीक करना। तीसरी दुकान चलानी हो अथवा सब्ज़ी का ठेला लगाना।संघर्ष यथावत बना रहा!
उनके पिता कपड़े इस्त्री करते थे।उनका ठहराव भी कपड़े इस्त्री करने के काम पर हुआ।
परंतु मन और आत्मा से एकदम साफ़।कभी दुराव नहीं रखा कभी कुछ छिपाया नहीं।हमारे घर में ने एक सदस्य की तरह से थे।कभी वे हमारे यहां खाना खा रहे हैं;कभी हम उनके यहां।हमारी माँ ने अथवा उनकी मां ने भेदभाव नहीं रखा।एक ही चौके में एक ही थाली में खाना खाते रहे।जब भी हमें परिवार सहित सुख दुख में बाहर जाना होता था तो घर की चाबियाँ मनोहरी जी के हवाले करने में क्षण भर भी देर नहीं लगाई।
सृजन और विनाश सृष्टि का नियम है।प्रकृति में निरंतर परिवर्तन होता रहता है।यहाँ कोई स्थाई नहीं है।इसमें किसी भी प्राकृतिक वस्तु का जन्म और अवसान निश्चित है।इसी क्रम में हमारे अत्यंत प्रिय मित्र के बारे में
कल सांय अत्यंत दु:खद समाचार प्राप्त हुआ कि हमारे प्रिय अनुज मनोहर लाल मेहता उर्फ़ मनोहरी का देहावसान हो गया।वो कोई सुकरात,सिकंदर या महात्मा गांधी नहीं थे कि उसका समाचार खबरिया चैनल में उनके देहावसान का समाचार आता।वो हमारे पारिवारिक सदस्य ही थे।घर के सामने कपड़ों पर इस्त्री करने का कार्य करते थे।हमारा सबका बचपन साँझी विरासत लिये रहा।स्कूल से आने के बाद जैसे क्रिकेट का बैट और गेंद ही एकमात्र दुनिया थी जिसमें हम सब एक साथ डूबे रहते थे।उनकी विकेट-कीपिंग और ओपनिंग बल्लेबाज़ी हमारे मन मस्तिष्क पर अमिट छाप छोड़े हैं।आज भी मनोहरी शब्द के साथ आनंद शर्मा नामक तेज गेंदबाज़ को एस डी स्कूल के मैदान अथवा डी ए वी हाई स्कूल के मैदानों में गुरुग्राम के नामी गेंदबाज़ों पर लगाये गये दनदनाते शाटस दिमाग में अमिट छाप छोड़े हुये हैं।हमारे लिये तो वे ही साक्षात तेंदुलकर और सहवाग थे।जब भी गुरुग्राम जाना होता है तो घर के सामने इस्त्री करते मनोहरी के दर्शन और शाम के समय सारे बचपन के मित्र ताश खेलते;बीड़ी पीते ,आँखों के सामने तैर जाते हैं।मिलन स्थल था मनोहरी की इस्त्री की मेज़।अपने घर अथवा उनके घर पर सुख-दु:ख के समय एक परिवार के सदस्य की तरह साथ खड़े रहे।आज उनके जाने के बाद ये सब यादें ही रह गई हैं।मनोहर लाल मेहता यादों से कभी निकल नहीं पायेंगे मरते दम तक।परमपिता परमात्मा उनको अपने चरणों में स्थान दे।
राजेश’ललित’