मनोस्थिति
है द्वन्द्व दिल में मेरे,
जो पास है क्या वो यथार्थ है।
पदचिह्नों में जिनके , चले थे कदम मेरे,
किससे पूछूं जिंदगी का, क्या भावार्थ है।
बेकल मन है, बेसुध तन है,
भाव उठे प्रीत में जिनके ,वो निःस्वार्थ है।
मयूर पर हो, या कोयल सा कलरव हो,
जैसा भीतर हूँ ह्रदय से, वही मेरा चरित्रार्थ है।
✍ देवेंद्र