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10 Dec 2023 · 1 min read

मनोरमा

मनोरमा

आँख मिंजती है निशा
चांदनी भी थकी हुई।
चाँद की बाहों में आकर
अभ्र आँखे मूंदी हुई।

भोर की रति-प्रेम भान
शीत किसलय को जगाती।
समीर की वेदना पहल
सरोवर को नहलाती।

रवि विह्वल है ओज से
क्रोध का ताप दे।
धरा खिलखिलाती हुई
नीम का छाँव ले।

साँझ काजल ढारे हुए
तिमिर जुड़ा साजे हुए
लालिमा की फूल खिली
लज्जा से आधे हुए।

साज पर मंझे निशाचर
जोगन ढूँढते अवसर।
कुमुदनी के गीत भी
भीनी-भीनी बिखेरी रातभर।

सुरेश अजगल्ले “इन्द्र”

Language: Hindi
2 Comments · 178 Views
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