मनुहार वक़्त की
झेल रहे हम मार वक़्त की,
धार तेज है यार वक़्त की।
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धुल जातीं सब शास्त्र की बातें,
पडती जब भी धार वक़्त की!
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रूठे-रूठे से सब दिखते,
कैसे करें मनुहार वक़्त की!
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तैरना आता हमें नहीं फिर,
कैसे नदी हो पार वक़्त की!
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‘सरस’ जहाँ के तहाँ खड़े हम,
महिमा यह बेकार वक़्त की!
*सतीश तिवारी ‘सरस’,नरसिंहपुर (म.प्र.)