मनुष्य
जो मनुज उदाहरणार्थ है,
वही तो प्रश्ननार्थ है।
उसी को जगत देखता,
वही तो दर्शनार्थ है।।
जिसके कर्म में परमार्थ है,
वही तो जग हितार्थ है।
जो दूर रहे दंभसे,
वह मनुज ही सत्यार्थ है।।
जो दूर रहे स्वार्थ से,
जो सहज ही कृतार्थ है।
“संजय” वही मनुष्य है,
वही परम पुरुषार्थ है।।
जै श्री सीताराम