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26 Mar 2018 · 1 min read

मनुष्य से ज्यादा विचलित कुछ भी नहीं ।

मनुष्य विचारवान् है .
यही उसका विकास और पतन भी .
.
वह सही अर्थ में .
इंसान खुद को खोजने में असमर्थ रहा .
धर्म को तो बिल्कुल नहीं खोज पाया .
हाँ उसने बाधाओं को जरूर उत्पन्न कर लिया है ।
जो उसे खुद के बनाये जाल में ही .
फंसा कर दबोच बैठी ।
.
यही कारण है ।
खुद से मुक्त होने के लिये ।
भिन्न भिन्न जाल बुनता है ।
और खुद ही असहाय महसूस करता है ।।
.
और गहराई में उलझ जाता है ।
और मौत को पहचान नहीं पाता ।
और मृत्यु हो जाती है ।
मुक्ति नहीं मिलती ? ?
.
@mahender2872
Realistic Literacy
Dr. Mahender Singh

Language: Hindi
Tag: लेख
1 Like · 1 Comment · 486 Views
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