मनुष्य से ज्यादा विचलित कुछ भी नहीं ।
मनुष्य विचारवान् है .
यही उसका विकास और पतन भी .
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वह सही अर्थ में .
इंसान खुद को खोजने में असमर्थ रहा .
धर्म को तो बिल्कुल नहीं खोज पाया .
हाँ उसने बाधाओं को जरूर उत्पन्न कर लिया है ।
जो उसे खुद के बनाये जाल में ही .
फंसा कर दबोच बैठी ।
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यही कारण है ।
खुद से मुक्त होने के लिये ।
भिन्न भिन्न जाल बुनता है ।
और खुद ही असहाय महसूस करता है ।।
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और गहराई में उलझ जाता है ।
और मौत को पहचान नहीं पाता ।
और मृत्यु हो जाती है ।
मुक्ति नहीं मिलती ? ?
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@mahender2872
Realistic Literacy
Dr. Mahender Singh