मनुष्य और जानवर पेज 01
मनुष्य को पालने वाले जानवरों का योगदान बहुत पृचीन समय से चला आ रहा है।मनुष्य के साथ सहयोग का वातावरण उत्पन्न कर.सृष्टि का सृजन मे सहयोग पृदान करते है।पर.मनुष्य का तो झूठी वाही वाही लूटने का का सवभाव बन चुका है।वह अपने आप को बहुत समझदार समझता है।पर.जिनका उसको सहयोग पिरापत होता है।उनको भूल जाता है।उन जानवरों के साथसे ही ।वह सफल बनता है।और सफल होकर फिर उनहे भूल जाता है।और उन बेजुबान जानवरों को दुख देने लगता है।जब तक उसको पालने वाली गाय माता दूध देती है ।तभी तक उसे वह चारा खिलाता है।जब वह दूध देना बँद कर देती है।तब फिर उसके साथ।गलत बयवहार करने लगता है।यह उसका धर्म नहीं है।जब तक इनसान अपने रूप की परिभाषा नही समझता है।तब तक वह धर्म और सत्य की राह नहीं अपनाता है।उसे कदम दर कदम पर गुरु की आवश्यकता महसूस होने लगती है।जब तक वह अपने को सफल नही बना पाता है।