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20 Feb 2021 · 1 min read

मनुष्य और जानवर पेज ०८

मनुष्य श्रृंगार को बहुत पसंद करता है।और असत्य को स्वीकार करता रहता है।और सत्य को नकारता रहा है। लेकिन फिर भी। सच्चाई को पचा नहीं नही सकता है। क्योंकि सत्य की शक्ति से वह जीवन भर अनजान बना रहता है। जानवर को कोई श्रृंगार रस की कोई जरूरत महसूस नहीं करता है।वह सीधा साधा जीवन स्वीकार करता है। क्योंकि वह सत्य को पहचानता है। और आनन्द मय जीवन जीता है।राग द्वेश वाला वातावरण नही स्वीकार करता है। एक दिन में बस से यात्रा कर रहा था। तभी बस जाम में फस गई ।तब मैंने बस की खिड़की से झांक कर देखा तो एक साधु संत चार घोड़ों के रथ में सवार होकर कथा करने कथा स्थल पर जा रहे थे। उनके साथ, आगे आगे घोड़ों को एक आदमी नचा रहा था।वह उन घोड़ों पर हंटर बर्षा रहा था। घोड़ों की आंखों से आंसू बह रहे थे।और पूरा शरीर पसीने से लथपथ हो रहा था। मैंने मन ही मन कहा कि यह कैसा महात्मा है।और इस तरह का आयोजन कर रहे है। ये इन निर्दोष जानवरों को बेरहमी से पीट रहे हैं।कि वह भीड़ केवल तमाशा बनीं देख रही थी।उन घोड़ों के दर्द से वह भीड़ बेखबर थी। क्या सरकार केवल मनुष्य के लिए ही कानून बनाती है।इन जानवरों के लिए विशेष कानून बनाये जाने चाहिए।

Language: Hindi
Tag: लेख
222 Views
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