विवाह रचाने वाले बंदर / MUSAFIR BAITHA
तुलसीदास और वाल्मीकि जैसे ब्राह्मणों ने अलबेली कहानियां गढ़ीं। त्रेता जैसे ’शून्यकाल’ में भी उन्होंने आदमियों को उगा दिया।
उन्होंने यही नहीं किया, बल्कि इन बेहद कल्पना कुशल बामनों ने इन बेसिरपैर की कथाओं में यह भी कल्पना घुसेड़ दी कि मनुष्य की तरह भालुओं और बंदरों की प्रजातियों में भी बाजाब्ते शादियाँ होती थीं।
हनुमान नामवर देव कैरेक्टर के बंदर का बाप पवन (हवा) था और मां थी अंजनी। दो बंदर भाइयों, बाली और सुग्रीव की कथा में पत्नी विवाद का हल करते हुए ‘भगवान’ ने एक भाई, सुग्रीव का नैतिक समर्थन किया और बाली को विवाह संस्था के कायदों के उल्लंघन की सजा उसकी हत्या करवा कर दी और उलझे पारिवारिक मैटर को सुलझाया था!
इस हिसाब से देखें तो मॉडर्न काल के बंदर हनुमान, सुग्रीव, बाली की तरह आधुनिक मोड के ओल्ड फैशंड न पैदा होकर पिछड़े जीन के साबित हो रहे हैं, जो न तो मनुष्यों की तरह बातचीत कर सकते, न ब्याह।