मनुष्यत्व
मनुष्य देह प्रदान कर दी
असीम अनुकम्पा तुम्हारी
दया कर मनुष्यत्व भी दो
अन्यथा देह बोझ हमारी
पशुत्व पशु मे उचित पर
मनुष्य मे मनुष्यत्व नही
बुद्धि विवेक विचारशक्ति
क्यों उचित व्यवहार नही
दया-प्रेम संवेदनशीलता
रिश्ते- नाते तार हो रहे
धार पशुत्व होता पशुवत
हितैषी सब बेजार हो रहे
मान-सम्मान उचित आदर
न कर अनादर करने लगे
माता-पिता गुरू जन सखा
पद गरिमा खाक करने लगे
बुराई रूझान अच्छाई नही
धैर्य हीन शीघ्रता मे बह रहे
छलांग लगा पाने की जिद
गर्त मे जीवन व्यर्थ कर रहे
दो हमे सदबुद्धि रचयिता
मन-बुद्धि सब वश मे रहे
सद्कर्म करें हित हो सबका
मनुष्य रहें, मनुष्यत्व रहे।
स्वरचित मौलिक
सर्वाधिकार सुरक्षित
अश्वनी कुमार जायसवाल कानपुर
प्रतियोगिता प्रतिभागी