मनीषा की आवाज
चल कहीं और चल, ये शहर छोड़कर
न रहा अब शहर, ये जीने लायक तेरे
है यहां हर तरफ,बस दरिंदों घर
है,उनकी नजर, हम बहन, बेटी पर
चल कहीं और चल ये शहर छोड़कर।
ऐ खुदा मैं करूं, तुझसे यही इल्तज़ा
न मैं जन्मू कभी,फिर,इस जमीं पर यहां
बस यही चाह है,न हो कभी अंश नारी का
ताकि फिर न बने कोई हवस का शिकार
चल कहीं और चल ये शहर छोड़कर
न रहा अब शहर ये जीने लायक तेरे।
ऐ ख़ुदा है अगर तु, इस जमी पर यहां
करना ऐसा करवा हो सभी एक सा
है अगर कोई भी, मानवता का ज्ञान
तु पढ़ना इन्हें, बनाना पशु से इंसान
चल कहीं और चल ये शहर छोड़कर
न रहा अब शहर ये जीने लायक तेरे।
संजय कुमार✍️✍️