मनहरण घनाक्षरी
ये बदल सावन के ,
पिया मन भावन से ।
रिम झिम बरसत ,
रस प्रियतम से ।
ज्यों प्रणय निवेदन ,
साजत है साजन से ,
थिरकन होंठो पर ,
मद मुस्कानन में ।
बहत श्रृंगार सभी ,
भींगी अंगिया तन पे ।
लरज़त है वा सखी ,
गोरी ज्यों साजन से ।
आस जगी जा सावन ,
प्यासे इन नैनन में ।
आएंगे सजन मेरे ,
अबकी सावन में ।
…. विवेक दुबे”निश्चल”@…