मनहरण घनाक्षरी
विषय – बेटी
बेटी है स्वर्ग की परी
बेटी बगिया है हरी
बेटी से ही पीढ़ी तरी
मान उसे दीजिए।
बेटी पूजा की महक
बेटी खुशी की चमक
पंछियों की है चहक
खुश उसे रखिए।
दे दो बेटी को सम्मान
करो नहीं उसे दान
नहीं वो कोई सामान
प्यार उसे दीजिए।
बेटी नहीं जिस घर
नहीं ईश की मेहर
बेटी खुशी की लहर
भ्रूणहत्या रोकिए।
बेटी प्रभु की प्रसाद
घर बेटी से आबाद
रखिए उसे आजाद
बेटी को पढ़ाइए ।
बेटी पर की कुदृष्टि
उससे कुपित सृष्टि
दंड की ही होगी वृष्टि
श्राप मत लीजिए।
बेटी शुचि गंगा जल
बेटी पुनीत निर्मल
मन उसका निश्छल
उसे पहचानिए।
सुखों का करो वरण
पूजो बेटी के चरण
मिलेगी प्रभु शरण
मोक्ष आप पाइए।
रंजना माथुर
अजमेर( राजस्थान)
मेरी स्वरचित व मौलिक रचना
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