मनहरण घनाक्षरी
०००
गौरी सी है प्यारी मात, सिय सी दुलारी अति ,
राधा सी है अवतारी, सृष्टि महतारी है ।
ज्योति है ये ज्वाला है ये, जगत की जननी है ,
जगर-मगर जग , छाई उजियारी है ।।
वीणा भी बजावै धन, खन – खन बरसावै ,
कमल सुहावै कर , चक्र खंग धारी है ।
ओ री जगदम्बे ! कर, लम्बे कर नेह वार,
आ जा मात अम्बे आज, ‘ज्योति’ ने पुकारी है ।।
०
महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा ।
***.
🌾🌾🌾