मनहरण घनाक्षरी (गरमी का प्रकोप)-गुरू सक्सेना
मन हरण घनाक्षरी
31 वर्ण 16/15 पर यति।
अंत में गुरू अनिवार्य ।
8-8-8-7 पर यति उत्तम
गरमी का प्रकोप
सूर्य सूर्य नहीं रहा,उगल रहा है आग,
धरती के अंग अंग,फोले पड़ गये हैं ।
डाक्टर बादल ने किया है इलाज थोड़ा,
जूस जैसे पेय सभी,नभ चढ़ गये हैं।
कपड़े तालाब के भी ,सिकुड़ के तंग हुए ,
पेड़ वाले कूलर भी, लो बिगड़ गये हैं ।
नदी दुबली हुई है,जंगल उदास हुए,
गरमी में घूमने के घोड़े अड़ गये हैं ।