मनसिज सरसावन आया
फिर वसंत मनभावन आया
फिर मनसिज सरसावन आया
होने लगी फिर शिशिर विदाई
उपवन कानन ऋतु सुहाई
सजने लगे रसाल बौर से
मुदित मना ऋतुराज ठौर से
कुसुम कांति और कलरव में
कितने ठौर ऋतुराज के भव में
भावन भोर रुचिर अरुणाई
कंचन रश्मि भू सकल बिछाई
स्यामल पीत मधुकर चले आए
मुकुलित पुहुप देख मंडराए
सृष्टि सकल गैरिक हो आई
संत वसंत की करो अगुआई
अशोक सोनी
भिलाई ।