#मनमौजी_की_डायरी
#मनमौजी_की_डायरी
◆चाह थी “सीनियर सिटीजन” बनने की◆
◆आस गई पर हौसला अब भी वही◆
【प्रणय प्रभात】
सब चाहते हैं कि सदा जवान बने रहें। इसके लिए हरसंभव यत्न भी करते हैं। प्रयास होता है कि उम्र एक मोड़ पर आ कर ठहर जाए। मेरी सोच हमेशा इससे उलट रही। मेरी चाह जल्द से जल्द 60 वर्ष का हो कर “वरिष्ठ नागरिक” (सीनियर सिटीज़न) बनने की रही। ताकि मुझे आधे किराए में रेलगाड़ी से यात्रा की छूट मिल सके। जिस पर तथाकथित जन-हितेषी सरकार ने फिलहाल रोक लगा रखी है। रेल-यात्रा हमेशा से मेरी पसंद रही है। लंबे मार्ग की तीव्रगामी गाड़ी हो और साफ़-सुथरा कोच। कोच भी वातानुकूलित नहीं शयन-यान (स्लीपर), जिसमें लघु-भारत ही दिखाई नहीं देता। महान कार्टूनिस्ट आर.के. लक्ष्मण का “आम आदमी” (कॉमन मेन) सहयात्री होता है। अपने-अपने बोझ और अनुभवों के साथ। पूरी तरह जीवंत और समायोजन (एडजस्टमेंट) में निपुण भी। तरह-तरह के लोग, तरह-तरह के परिदृश्य। समय-सुयोगवश सहज ही निर्मित होते मानवीय सम्बन्ध। यह आनंद उस ठंडे एसी कोच में कहाँ, जहाँ गर्मजोशी का अकाल हो। हर तरह सफेद चादरों में लिपटी अकड़ की अनगिनत गठरियाँ। मोर्चरी (मुर्दाघर) में रहने जैसा आभास। मुदों में एक दूसरे से अधिक प्रभावी दिखने की अघोषित सी होड़। अनकही, अनसुनी, अनदेखी सी शर्तें और पाबंदियां। भद्रता व विलासिता प्रदर्शन का ओढ़ा हुआ पाखण्ड। शयन-यान की हर यात्रा एक नई सीख देने वाली। स्मरणीय क्षणों और कालजयी संस्मरणों के सृजन की संभावनाओं से परिपूर्ण। बहरहाल, पूरा किराया अदा कर यात्राओं का अनवरत क्रम जारी है। प्रतीक्षा थी जीवन का 60वां बसंत देखने की। ताकि रेलयात्रा में रियायत मिले। साथ ही बड़बड़ करते हुए उद्वेग बाहर निकालने की सामाजिक-पारिवारिक छूट भी। जो “सठियाने” का टेग लग जाने के बाद किसी हद तक ख़ुद ही मिल जाती है। फ़िलहाल, यात्रा में बने रहने और जीवनयात्रा के समानांतर आनंद लेने का चाव सदैव सा बना हुआ है। जिसे पूरा करने के प्रयास यथाशक्ति जारी बने हुए हैं। एक निर्धारित से अंतराल पर मन में गीत सा गूँजने लगता है। वही वाला-
“गाड़ी बुला रही है।
सींटी बजा रही है।।
चलना ही ज़िंदगी है।
चलती ही जा रही है।।”
पता चला है कि भरपूर घाटा भोगने का दावा करने और हर साल बोनस बाँट कर ख़ुद को झूठा साबित करने वाले भूखे-नंगे रेलवे ने सीनियर सिटीजन्स की रियायत भी ख़त्म कर दी है। कोविड काल में आपदा को अवसर बनाने वाले धूर्त मंत्र पर अमल करते हुए पैसेंजर गाड़ियों को एक्सप्रेस का नाम दे दिया गया है। आम यात्री किराया तीन गुना हो चुका है। लिहाजा वरिष्ठ नागरिक बनने की इच्छा भी कथित अच्छे दिनों ने छीन ली है। महाधूर्त जेबतराशी के फार्मूले खोज खोज कर लागू कर रहे हैं और हम जैसे “यायावर” अगली यात्रा की तैयारी। क्योंकि हम ना तो मुफ्तखोरों के झुंड का हिस्सा हैं, ना सरकारी रहमत के तलबगार। अपनी ज़िंदगी, अपना सफऱ और अपना हाथ जगन्नाथ। जय लोकतंत्र,,,,जय यायावरी।।
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