मनमोहना
मनमोहना…..
तुमने हमेशा दिल की ही था सुना
इतनी रानियों और पटरानियों के रहते
सिर्फ़ राधा को ही था चुना ,
गोपियों से हैं तुम्हारे आज भी दिल के नाते
इसिलिए रास रचाने तुम आज भी हो आते ,
द्रौपदी से तुम दिल से थे जुड़े
तभी तो उसकी लाज बचाने सिर्फ़ तुम्हीं थे खड़े,
पांडवों से भी तुम्हारा दिल था हिला
उसी नाते अर्जुन को गीता का ज्ञान था मिला ,
कौरवों से तुम्हारा दिल था रूष्ट
क्योंकि दुर्योधन अत्यंत था दुष्ट ,
कर्ण के दिल को तुमने कवच के अंदर से था जाना
इतने वीरों के रहते उसी को सर्वश्रेष्ठ योद्धा था माना ,
पितामह के लिए दिल से था आदर
उनका विरोधियों के साथ रहने के बावजूद
उनके लिए भरपूर प्रेम था सादर ,
द्रोणाचार्य की प्रतिभा को दिल से किया था प्रणाम
इसी वजह से उनकी मुक्ति के लिए रचे थे तुमने नये आयाम ,
अभिमन्यु तो तुम्हारा दिल ही था
खुद तुम्हारा दिल उसकी मृत्यु पर बिलख पड़ा था ,
इंसान तो इंसान निर्जीव से भी था दिल से लगाव इसी कारण बहेलिये के तीर ने चरण छूकर दिल को छुआ था
उसको पता था करने जा रहा है वो विधि के विधाता से छलाव ,
तुम्हारा दिल से दिल का जुड़ाव सबने स्वीकार किया
जीते जी हर कर्म हर धर्म तुमने दिल से किया
जीवन तो जीवन मृत्यु को भी प्रभु तहेदिल से लिया !!!
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 02 – 05 – 2017 )