“मनभावन”
“मनभावन (मुकरी छंद)
रूप सलौना खूब सजाते
श्याम भ्रमर मन को अति भाते
स्वप्न दिखाकर जागे रैना
ए सखि साजन?ना सखि नैना!
अधरों पर बैठी मुस्काती
कोकिल मीठी तान सुनाती
हिय भाती अति मनुज माधुरी
ए सखि साजन? ना सखि बाँसुरी!
देख बदरिया कारी-कारी
नाचत उपवन शोभा न्यारी
रूप लुभावत है चहुँ ओर
ए सखि साजन? ना सखि मोर!
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
संपादिका- “साहित्य धरोहर”
महमूरगंज, वाराणसी(ंो.–9839664017)