“मनभावन” श्रृंगार रस प्रधान कह मुकरी छंद/पहेलियाँ
विधा- कविता/पहेली
“मनभावन” श्रृंगाररस प्रधान (कह मुकरी छंद)
निरखत जिसमें रूप सजाऊँ
देख स्वयं को मैं इठलाऊँ
तन श्रृंगार अति आकर्षण
ए सखि साजन?ना सखि दर्पण!
छमछम करती प्रीत बुलाती
सौतन बनकर नींद चुराती
तन-मन देखो करती घायल
ए सखि साजन?ना सखि पायल!
भाल चढ़ी खुद पर इतराती
भोर की लाली रूप चुराती
मनभावन हरती निंदिया
ए सखि साजन?ना सखि बिंदिया!
हीरे मोती तन बिखराए बालों में जाकर लिपटाए जा कपोल पर मारे ठुमका ए सखि साजन ?ना सखि झुमका!
कारी-कारी बदरी छाई देख पिया के मन को भाई देख कालिमादिल है घायल ए सखि बादल ?ना सखि काजल!
रूप सलौना खूब सजाते
श्याम भ्रमर मन को अति भाते
स्वप्न दिखाकर जागे रैना
ए सखि साजन?ना सखि नैना!
भाभी का मन जिससे दूना
बिन उसके आँगन है सूना
सावन में मन भावत घेवर
ए सखि साजन? ना सखि देवर!
नेह सरस आँगन छितराती
मात-पिता को गले लगाती
ज्यों जेवर बिन सूनी पेटी
ए सखी साजन? ना सखी बेटी
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
संपादिका–साहित्य धरोहर
महमूरगंज, वाराणसी (मो.–9839664017)