मनचले की धुनाई
वो तो बस निहार रहा था
सुंदरता को सराह रहा था
हो गई चप्पल से पिटाई जब
वो तो बस कराह रहा था।।
गलती हो गई बेचारे से
जो एक बेटी को अबला समझ बैठा
जब पड़ी चप्पल की मार
तभी उसका दिमाग ठिकाने बैठा।।
दोस्तों से सीखा था जो उसने
अमल उसपर आज भारी पड़ गया
चढ़ना चाहता था जो घोड़ी पर
उसको गधे की सवारी करना पड़ गया।।
थी कालिख गालों पर उसके
कपड़े भी सारे फट गये थे
रहते थे हमेशा साथ जो दोस्त उसके
देख मौके की नज़ाकत दूर हट गए थे।।
निकल रहा था जुलूस उसका
सज रही गले में जूतों की माला थी
निहारा था जिसको उसने सबसे आगे
स्वागत करने वालों में वही बाला थी।।
अबला अब सबला हो गई है
ये जानने में भूल कर बैठा था
ये कैसे हो गया, जो आज दुर्गा को ही
पहचानने में भूल कर बैठा था।।
पा रहा है सज़ा अपने कर्मो की
हर कोई उस पर हंस रहा था
शर्म के मारे इज्ज़त का जनाज़ा उसकी
धीरे धीरे अब मिट्टी में धंस रहा था।।
मांग रहा माफी अब उससे
उसको छोटी बहन कह रहा था
मार पत्थरों और डंडों की
वो अब चुपचाप सह रहा था।।
सज़ा मिल रही है बस उसको
सबक उसके जैसे सभी को मिल रहा था
हुआ नहीं ये सब उनके साथ
मन ही मन हर कोई शुक्र मना रहा था।।
करे हर बहन बेटी ऐसी हिम्मत तो
कोई उनको ऐसे न सता पाएगा
गुजरेगी गली मोहल्ले से जब वो
कोई मनचला सिर न उठा पाएगा।।