*मनः संवाद—-*
मनः संवाद—-
08/12/2024
मन दण्डक — नव प्रस्तारित मात्रिक (38 मात्रा)
यति– (14,13,11) पदांत– Sl
कविता को जीना सीखो, तब सार्थक समझो सृजन, हो विचार भी नेक।
करते हैं उपदेश सभी, ऊँची बातें भी लिखें, भावों का अतिरेक।।
शुभ चारित्रिक कर्म नहीं, करते बस उपदेश ही, सृजनकार प्रत्येक।
सिर्फ वाहवाही चाहे, पैसा प्रसिद्धि भूख में, छाया है अविवेक।।
रहे सत्य पर आधारित, जीवन के नजदीक हो, श्रेष्ठ वही साहित्य।
धाराओं को नई दिशा, चिंतन नव आयाम दे, यही शुचित पांडित्य।।
वैचारिक हो क्रांति नवल, सुखमय जनगण गीत हो, महा लक्ष्य सानिध्य।
कविताई कर्तव्य समझ, जागरूक यह देश हो, सृष्टि सुलभ लालित्य।।
— डॉ. रामनाथ साहू “ननकी”
संस्थापक, छंदाचार्य, (बिलासा छंद महालय, छत्तीसगढ़)
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